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हिमाचल प्रदेश: हाईकोर्ट ने सुक्खू सरकार के 6 मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति को बताया असंवैधानिक, हटाने के दिए आदेश
हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार को हाल ही में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से एक बड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने सरकार द्वारा नियुक्त किए गए 6 मुख्य संसदीय सचिवों (CPS) की नियुक्तियों को असंवैधानिक मानते हुए उन्हें तुरंत पद से हटाने और उनकी सुविधाएं वापस लेने का आदेश दिया है। ये नियुक्तियां जनवरी 2023 में की गई थीं, और मुख्य संसदीय सचिवों को मंत्रियों के समान कई विशेषाधिकार दिए गए थे।
मामला: असंवैधानिक नियुक्तियों का आरोप
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में आशीष बुटेल, किशोरीलाल, मोहन लाल बरागटा, संजय अवस्थी, राम कुमार और सुंदर ठाकुर को मुख्य संसदीय सचिव (CPS) के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें मंत्रियों के समान सुविधाएं दी गई थीं, जिनमें सरकारी वाहन, दफ्तर, व्यक्तिगत स्टाफ, और एक मंत्री की तरह वेतन-भत्ते शामिल थे। इस निर्णय पर विपक्ष और कई जनहित याचिकाकर्ताओं ने सवाल उठाए और अदालत में याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि यह नियुक्तियां संविधान के खिलाफ हैं, क्योंकि मुख्य संसदीय सचिव का पद राज्य मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं होता और इसे संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है।
हाईकोर्ट का आदेश
13 नवंबर 2024 को, हाईकोर्ट ने इन नियुक्तियों को असंवैधानिक मानते हुए तत्काल प्रभाव से 6 मुख्य संसदीय सचिवों को हटाने का आदेश दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि सभी नियुक्त CPS को दी गई सुविधाएं, जैसे कि गाड़ी, दफ्तर, और स्टाफ, तुरंत वापस ले लिए जाएं। हाईकोर्ट का मानना था कि यह नियुक्तियां संविधान की धारा 164(1A) का उल्लंघन करती हैं, जो मंत्रिपरिषद के आकार को सीमित करती है और ऐसे पदों पर नियुक्ति की अनुमति नहीं देती है।
राज्य सरकार के लिए राजनीतिक झटका
यह फैसला हिमाचल प्रदेश में सुक्खू सरकार के लिए एक बड़ा राजनीतिक झटका है। इन CPS की नियुक्तियां सरकार की राजनीतिक मजबूती को बढ़ाने के लिए की गई थीं और कांग्रेस पार्टी के भीतर समर्थन जुटाने का एक अहम जरिया थीं। विपक्ष ने इस मुद्दे को सरकार पर प्रहार करने के लिए उपयोग किया, और इसे सरकार की प्रशासनिक कमजोरियों का उदाहरण बताया।
आगे का रास्ता: सुप्रीम कोर्ट में अपील का विकल्प
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सुक्खू सरकार इस फैसले के खिलाफ क्या कदम उठाती है। सरकार के पास इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का विकल्प है। अगर सरकार अपील करती है, तो इससे यह मामला कानूनी रूप से लंबा खिंच सकता है। लेकिन यदि सरकार इसे स्वीकार करती है, तो उसे अपने राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे में बदलाव करना होगा।
हाईकोर्ट के इस फैसले ने न केवल हिमाचल प्रदेश में संवैधानिक प्रक्रियाओं और विधायिका की सीमाओं पर एक नई बहस छेड़ दी है, बल्कि सुक्खू सरकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति भी खड़ी कर दी है। इस फैसले का असर राज्य की राजनीति और सरकार के कार्य करने के तरीके पर पड़ सकता है, और आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि सुक्खू सरकार किस तरह से इस फैसले से निपटती है।