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Latest News Online:”बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, योगी सरकार को घर टूटने वालों को 25 लाख मुआवजा देने का आदेश”

“बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, योगी सरकार को घर टूटने वालों को 25 लाख मुआवजा देने का आदेश”

"बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, योगी सरकार को घर टूटने वालों को 25 लाख मुआवजा देने का आदेश"

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को महाराजगंज जिले में सड़क चौड़ीकरण परियोजना के तहत हुए बुलडोजर एक्शन पर सख्त फटकार लगाई और प्रभावित परिवार को 25 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया। यह मामला स्वतः संज्ञान में लिया गया था, जहां राज्य सरकार द्वारा घरों को बिना किसी उचित प्रक्रिया या पूर्व सूचना के ध्वस्त कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने इसे अराजक और मनमानी कार्रवाई करार दिया, जिसमें कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सीजेआई ने राज्य सरकार से पूछा कि केवल 3.7 वर्गमीटर के कथित अतिक्रमण के आधार पर पूरे घर को गिराना कैसे उचित है। कोर्ट ने कहा कि यह केवल कानून का उल्लंघन नहीं बल्कि एक तरह की अराजकता है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि कितने घरों को तोड़ा गया है और क्या इसे अतिक्रमण करार देने के लिए कोई पर्याप्त प्रमाण या दस्तावेज थे। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से मामले की गहन जांच का आग्रह किया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सहमति जताई।

जांच और उचित मुआवजे का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से सवाल किया कि 1960 से यह निर्माण वहां था, तो अब अचानक इसे अनधिकृत निर्माण कहकर तोड़ने का निर्णय क्यों लिया गया। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने राज्य के वकील को फटकारते हुए कहा कि बिना सूचना के अचानक बुलडोजर से घर गिरा देना उचित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि सड़क चौड़ीकरण ही उद्देश्य था, तो इसके लिए नियमानुसार भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया का पालन करना चाहिए था, न कि बिना सूचना दिए बुलडोजर एक्शन लेना चाहिए था।

एनएचआरसी की रिपोर्ट और अधिग्रहण प्रक्रिया पर सवाल

एनएचआरसी (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग) की रिपोर्ट में भी यह सामने आया कि जिन घरों को तोड़ा गया वह कथित अतिक्रमण क्षेत्र (3.75 मीटर) से कहीं अधिक थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार के पास परियोजना की वास्तविक चौड़ाई को दर्शाने वाले कोई दस्तावेज नहीं हैं, न ही कोई दस्तावेज यह साबित करते हैं कि अतिक्रमणों को चिह्नित करने के लिए कोई प्रक्रिया अपनाई गई थी। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले में गहन जांच होनी चाहिए और उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना प्रभावित लोगों के घरों को तोड़ना कानून का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से साफ है कि सरकार द्वारा बिना उचित सूचना और वैध अधिग्रहण प्रक्रिया के किसी के भी घर को ध्वस्त करना कानून का उल्लंघन है। न्यायालय ने राज्य सरकार को स्पष्ट किया कि विकास के नाम पर मनमानी और अनुचित कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी, और ऐसे मामलों में दंडात्मक मुआवजे का प्रावधान भी सुनिश्चित किया जाएगा।

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