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27 की उम्र में वीरभद्र सिंह बने थे नेशनल पॉलिटिक्स की पसंद

27 की उम्र में वीरभद्र सिंह बने थे नेशनल पॉलिटिक्स की पसंद

राजनीति के पुरोधा रहे स्वर्गीय वीरभद्र सिंह हिमाचल की राजनीति में ही खास नहीं माने जाते थे, बल्कि नेशनल पॉलिटिक्स पर भी उनका परचम लहराता था। आज भी उनकी राजनीति को याद किया जाता है। बता दें कि वीरभद्र सिंह 27 वर्ष की उम्र में अखिल भारतीय कांग्रेस को पंसद आए थे। पार्टी के नेशनल नेताओं ने उन्हें इस छोटी उम्र में मंडी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सीट पर प्रत्याशी उतारा था और मंडी संसदीय क्षेत्र की जनता ने उन्हें जीताकर सीधा लोकसभा संसद में भेज डाला।

यही नहीं, उनकी धर्मपत्नी वर्तमान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्षा प्रतिभा सिंह को भी राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसी सीट से सीधे सांसद के चुनाव में उतारा था। वहीं अब इनके पुत्र विक्रमादित्य सिंह भी नेशनल पॉलिटिक्स की जमीन के लिए मंडी संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी घोषित हुए हैं।

अब यह इस सीट पर काबिज होने में कितना सफल होते हैं, यह आने वाला लोकसभा चुनाव का परिणाम ही बताएगा। बचपन से ही घर पर राजनीतिक मौहल के बीच पले बड़े विक्रमादित्य सिंह भी जिस तरह से पिता व माता की तरह पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, इससे राजनीति गलियारों में अब यह चर्चा भी आम है कि दिल्ली संसद में जाने के बाद नेशनल पॉलिटिक्स के बाद कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें जब हिमाचल वापस भेजा, तो वह सीधे मुख्यमंत्री के दाबेदार हुए और लगातार फिर छह बार उन्होंने मुख्यमंत्री की कमान भी संभाली। वहीं, अब विक्रमादित्य सिंह भी पिता की ही राह पर चलकर जनता की सेवा करते हैं। वह बात साफ दिख रही है कि किस तरह से पिता के लक्ष्य कदमों पर चलने वाले पुत्र अब राजनीति की दौड़ में भी नेशनल पॉलिटिक्स में आगे बढ़ते हुए राजनीतिक सफर तय करने लगे हैं।

नेशनल पॉलिटिक्स से करियर की शुरुआत

अकसर राजनीतिक करियर की शुरुआत राज्य से होती है, तो वहीं वीरभद्र सिंह ने सीधा नेशनल पॉलिटिक्स में डेब्यू किया। 1962 में 27 साल की उम्र में वह लोकसभा सांसद बने। इसके बाद उन्होंने 1967, 1971, 1980 और 2009 में चार और कार्यकाल में सांसद के रूप में सेवा दी। 2009 की यूपीए-2 सरकार में उन्हें सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग मंत्री का कार्यभार सौंपा। 1983 में पहली बार बने मुख्यमंत्री, 1980 तक चार बार लोकसभा सांसद बनने वाले वीरभद्र सिंह को प्रदेश की कमान 1983 में सबसे पहले मिली। 1985 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के साथ वह 1983 से 1990 तक लगातार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।

वीरभद्र सिंह की लोकप्रियता राज्य में इतनी थी कि 1993, 1998, 2003 और 2012 में वह फिर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि 1998 में सीएम के रूप में उनका कार्यकाल केवल 18 दिनों तक चला, क्योंकि वह विश्वास मत हासिल करने में विफल रहे थे। 2012 चुनावों से पहले वीरभद्र सिंह ने यूपीए-2 में केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्हें प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। कांग्रेस ने 2012 में प्रदेश विधानसभा चुनाव फिर से वीरभद्र सिंह की अगुवाई में लड़ा और जीत हासिल की। 2017 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था।

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