1966 में निर्मित हुई थी बस्सी परियोजना
हिमाचल डेस्क – हिमाचल के मंडी में सैलानी 50 साल बाद छपरोट रेजर वायर को जी भर के निहार सकेंगे।बता दें कि छपरोट में परियोजना के पार्क, निरीक्षण कुटीर और पर्यटकों को बैठने के लिए पुख्ता प्रबंध करने की तैयारी चल रही है। यहां पर ट्रॉली में पर्यटकों को रोमांच का सफर करवाया जाएगा। छपरोट में परियोजना के पार्क, निरीक्षण कुटीर और पर्यटकों को बैठने के लिए पुख्ता प्रबंध करने की तैयारी चल रही है।
रेजर वायर में विदेशी परिंदों को उतारने की तैयारी
रेजर वायर में विदेशी परिंदों को भी उतारने की तैयारी परियोजना प्रबंधन ने शुरू कर दी है। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए जहां कैफे हाउस के संचालन पर विचार-विमर्श शुरू हुआ है। वहीं, छोटे बच्चों के लिए झूले भी लगाने का प्रारूप तैयार किया जा रहा है। लाखों रुपये छपरोट रेजर वायर परिसर को चकाचक करने में खर्च किए गए हैं।
सड़क की हालत को भी सुधारा गया
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बता दें कि शानन संपर्क मार्ग से रेजर वायर तक करीब आठ किलोमीटर सड़क की हालत को भी सुधार लिया गया है। ऐसे में 50 साल पुरानी रेजर वायर में पर्यटकों के गुलजार होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। परियोजना के अधिकारीयों के अनुसार प्रथम चरण में दो लाख से अधिक का खर्च रेजर वायर परिसर के जीर्णोद्धार पर होगा। 11.50 मीटर ट्रॉली के ट्रैक को सुधारने को लेकर परियोजना प्रबंधन के उच्चाधिकारियों से बजट की मांग की है।
प्रतिवर्ष 100 करोड़ रुपये की कमाई
मंडी जिले के जोगिंद्रनगर शहर से छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित बस्सी में 66 मेगावाट की पन विद्युत परियोजना को 50 वर्ष पूरे हो गए हैं। यहां से प्रतिवर्ष 100 करोड़ की कमाई होती है। परियोजना में साढ़े 16 मेगावाट की क्षमता वाले चार टरबाइन कार्य कर रहे हैं और छपरोट स्थित रेजर वायर में 80 हजार क्यूसिक मीटर पानी होने पर इनसे प्रतिदिन 15 लाख 84 हजार यूनिट बिजली का उत्पादन होता है।
17 मई 1965 को रखी गई थी आधारशिला
बस्सी पन विद्युत परियोजना की आधारशिला 17 मई 1965 को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कामरेड राम किशन ने रखी थी। परियोजना की 15 मेगावाट की पहली टरबाइन ने 13 अप्रैल 1970 को विद्युत उत्पादन शुरू कर दिया था। दूसरी टरबाइन ने 24 दिसंबर 1970 तथा तीसरी टरबाइन ने 15 जुलाई 1971 को बिजली उत्पादन शुरू कर दिया। इस परियोजना के निर्माण पर आरंभिक तौर पर लगभग साढ़े 17 करोड़ व्यय किए गए हैं।
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