3 साल में हज़ारों लोगों ने गंवाई प्राकृतिक आपदा में जान !
उत्तराखंड के जोशीमठ में आज जो हालात बने हुए हैं उसी से सबक लेते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी भू-धंसाव के खतरे को भांपते हुए कदम उठाना शुरू कर दिया है।इसलिए हिमाचल के मुख्यमंत्री ने राज्य आपदा प्रबंधन के अधिकारियों और प्रदेश के सभी जिला उपायुक्तों के साथ एक बैठक की जिसमें मुख्यमंत्री ने हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग जगहों की सिंकिंग ज़ोन की रिपोर्ट मांगी है।
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क्या हिमाचल में उत्पन्न हो सकती है जोशीमठ जैसी स्थिति ?
जोशीमठ जैसे हालात हिमाचल में ना पैदा हो उसके लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि क्या हिमाचल प्रदेश में इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है या नहीं। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने हिमाचल में 1,71,210 लैंडस्लाइड- प्रोन क्षेत्रों की पहचान की है, जिनमें से 675 को “अत्यधिक संवेदनशील” श्रेणी में रखा गया है।
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किन -किन जिलों को खतरा ?
हिमाचल प्रदेश में इन 675 जगहों में से बिलासपुर में 37 अति संवेदनशील क्षेत्र, चंबा में 133, कांगड़ा में 102, किन्नौर में 15, कुल्लू में 55, लाहौल स्पीति में 91, मंडी में 110, शिमला में 50, सिरमौर में 21, सोलन में 44 और ऊना में 63 भूस्खलन को लेकर अति संवेदनशील क्षेत्र हैं। ऐसे में जोशीमठ की तरह हिमाचल प्रदेश पर भी बड़े प्रलय का खतरा लगातार मंडरा रहा है।
प्राकृतिक आपदाओं से हज़ारों लोगों ने गंवाई जान
पिछले तीन सालों में हिमाचल प्रदेश में बड़े स्तर पर लैंडस्लाइड की 233 घटनाएं सामने आई। इनमें 2020 में 16, 2021 में 100 और 2022 में 116 भूस्खलन की घटनाएं शामिल हैं। सिरमौर जिले में सबसे ज़्यादा 2559 स्थानों पर जमीन धंसने की घटनाएं सामने आई हैं। हिमाचल में आई प्राकृतिक आपदाओं से 5012 लोग अब तक अपनी जान गंवा चुके हैं।
शिमला में लगातार बढ़ रही लैंड-सिंकिंग
बता दें कि प्रदेश के 675 स्थानों पर लगातार जमीन धंसने की घटनाएं सामने आ रही हैं और इन स्थानों पर घनी आबादी रहती है या फिर आधारभूत ढांचे का निर्माण किया गया है। प्रदेश सरकार के पास लैंडस्लाइडिंग और लैंड सिंकिंग के मामलों की असली रिपोर्ट आना अभी बाकी है। हिमाचल प्रदेश के प्रमुख शहरों धर्मशाला के मैकलोडगंज और शिमला में लैंड सिंकिंग के मामले लगातार सामने आ रहे हैं।
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