हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया – किसी भी व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया अपनाए बिना संपत्ति से नहीं किया जा सकता वंचित!
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने भूमि अधिग्रहण के मामले में महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। अदालत ने निर्णय सुनाया है कि संपत्ति का अधिकार भले ही मौलिक अधिकार नहीं है, फिर भी इसे संविधान में विशेष स्थान दिया गया है। भूमि अधिग्रहण के समय यह एक सांविधानिक अधिकार है। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया अपनाए बिना संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है। सरकार भूमि अधिग्रहण करने के बाद मुआवजा देने से यह कहकर मना नहीं कर सकती है कि मुआवजे के लिए देरी से आवेदन किया गया है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने सरकार की अपील को खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया।
राज्य सरकार मुआवजा अदा करने के मामले में नहीं अपना सकती मनमाना तरीका
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य सरकार मुआवजा अदा करने के मामले में मनमाना तरीका नहीं अपना सकती। सिरमौर निवासी कल्याण सिंह और अन्य को मुआवजे का हकदार ठहराते हुए अदालत ने कहा कि सरकार ने शिलाई-नया गट्टा मंडवाच सड़क का मुआवजा देते समय मनमाना तरीका अपनाया है। जिन लोगों को अदालत ने हकदार ठहराया था, केवल उन्हें ही मुआवजा दिया गया है। बाकी के हकदारों को सरकार ने मुआवजा देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि उन्होंने मुआवजे के लिए देरी से आवेदन किया है। खंडपीठ ने कहा कि सरकार का यह निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31 अधिकार का सरासर उल्लंघन है।