हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष अंबरीश कुमार महाजन ने कहा कि- “मैं आपको डराना नहीं चाहता, एक बात बताइए…. समहिल क्षेत्र में शिव जी के मंदिर पर भूस्खलन से जीतने लोग दबे हैं, क्या उन सबको आप तीसरे दिन निकाल पाए है….? नही, क्योंकि वहां एक्सकेवेस्टर या अन्य उपकरण आसानी से पहुंच ही नहीं सकते। अब सोचिए…. ईश्वर न करे, कभी शिमला में भूकंप आ जाए तो क्या होगा? यह बोलते ही प्रोफेसर और अध्यक्ष अंबरीश कुमार महाजन चुप हो जाते हैं पर कही ना कही ये प्रश्न मन में चिंता और डर पैदा करने वाला है।

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“शहरी विकास निदेशालय का भवन खाली करवाया गया…. क्योंकि भूस्खलन की आशंका है … भय है। दूसरी बार हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश से इतना कुछ हो गया है कि जो आदमी ने कभी सोचा भी नहीं था। कितने जीवन समाप्त हो गए…. कितने ही भवन धराशायी हो गए…. कितने ही लोग लापता हो गए….। समरहिल में शिव जी के मंदिर में हुए भूस्खलन से अब तक 13 शव बारमाद हुए है, जबकि माना जा रहा है कि उस समय मंदिर में 25 से 30 लोग थे। नाभा और कृष्णानगर में स्लॉटर हाउस वाला क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित है। ये सारी बातें प्रोफेसर और अध्यक्ष अंबरीश कुमार महाजन ने दुखी मन से कही।”
अंधाधुंध निर्माण की कीमत चुकाई गई
प्रोफेसर एवं अध्यक्ष अंबरीश कुमार महाजन ने कहा की की “क्या ये सब कुछ आपदा के कारण हुआ? या यह सब इसलिए हुआ क्योंकि इस वर्ष वर्षा सामान्य रूप से अधिक हुई? या इसलिए हुआ क्योंकि ठीक स्थानों पर नही बने थे? समरहिल में शिव जी के मंदिर वाला क्षेत्र ड्रेनेज जोन में था। इसी कारण वहा भयंकर भूस्खलन हुआ। अंधाधुंध निमार्ण की कीमत कभी न कभी तो चुकानी पड़ती। न्यायपालिका के हर आदेश को टालने के लिए, अपने गलतियों और नियमों को तोड़ने के लिए कोई बेशक रिटेंशन पॉलिसी को कितना ही आगे कर दे, आप देवदार के गिरते हुए पेड़ो को कौन सा कागज दिखायेंगे?”
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने शिमला में अत्यधिक बोझ की बात की थी
“जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने शिमला में अत्यधिक बोझ की बात की तो उसे किसी ने क्यों नही सुना? 25 हजार लोगो के लिए बने शिमला शहर में 3 लाख से अधिक का बोझ हो चुका है। शिमला को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए क्या पहाड़ काट कर या नालों से पिलर उठा कर निर्माण किया जाएगा? शिमला में लगभग पांच सौ पेड़ गिरे है।”
सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए होता रहा कागजी पौधारोपण
“वर्षा सामान्य रूप से इस बार ज्यादा हुई इसमें कोई संदेह नहीं। पर क्या सिर्फ इसी वजह से इतना नुकसान हुआ? नही, पहाड़ों में मैदानों जैसी सुविधा लाने के लिए जो अवैज्ञानिक खनन, अतिक्रमण, अवैज्ञानिक कटान किए गए और बदले में केवल चित्र खिंचवाने के तहत कागजी पौधारोपण….।”
मुनाफा खोजने वाले लोभचारी
“बेसहारा पशुओं की बढ़ती संख्या के पीछे एक कारण कृत्रिम गर्भाधान करने वालो के अकुशल हाथ है, वैसे ही प्रकृति के प्रकोप के पीछे धनपशुओं का लोभ है। अपनी जड़ों से अलग होने वाले, हर पत्थर, रेत के हर कण में मुनाफा खोजने वाले लोग….।”
दुखी और रो रहे है पहाड़
प्रोफेसर आगे बोलते है की “वास्तव में पेड़ नाराज नही है बल्कि निढाल हो गए है। जैसे की गश खाकर कोई गिरता है, उसे पता नही होता की वह कहा गिर रहा है।” “पर्वत वो सबसे ऊंचा हमसाया आसमां का, वो संतरी हमारा, वो पासांबा हमारा, हमारी ही करतूत के कारण शिथिल हो गया है।”
नब्बे डिग्री की कोण में काटे गए पहाड़
“पहाड़ों को नब्बे डिग्री के कोण में काटा गया तो मलबे को कहा गिरना है इसमें कोई रहस्य नही? जब सड़को को डंपिंग जोन बनाया जाएगा तो उनसे कौन सी दया की अपेक्षा आप कर रहे है। विकास आवश्कता नही अनिवार्यता है किंतु विकास किसी कहा जाता है? पहाड़ों की अवैज्ञानिक कटान करना विकास कब से हो गया। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के पास विश्व स्तरीय अभियंता है तो क्या उनमें से एक भी यह नही सोच सकता की पहाड़ को काटना कैसे होता है? बेहद चौड़ी सड़क बनाने के लिए हिमाचल का नामो निशान ही मिट जाए ऐसा विकास किसी को भी नही चाहिए। ऐसे विकास का हम करेंगे क्या जिसमे प्रकृति को इतना नुकसान पहुंचाया जा रहा है।”
नदी के रास्ते का अतिक्रमण करके भवन बनाए गए
“जब नदी के रास्तों का अतिक्रम भवन बनाए गए तो खुद ही आपदा का वातावरण तैयार किया गया। नदी की गोद में ‘रिवर’ के नाम पर अपने घरों और होटलों का नामकरण कर इतराने वाले लोग जिनके वोट होते है, क्या वो नदी की धारा को रोक सके या आगे रोक सकेंगे।”
राष्ट्रीय आपदा से कम नहीं
“हिमाचल प्रदेश में जो इस बारिश से हुआ है, राज्य सरकार या केन्द्र सरकार माने या न माने, यह राष्ट्रीय आपदा से कम नहीं। राज्य सरकार और सभी राजनीतिक दलों को ये विचार करना बहुत ज्यादा आवश्यक है कि हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व को बनाए रखना बहुत जरूरी है। हिमाचल को मैदानों जैसी डेवलपमेंट की आवश्यकता नहीं है।”